Monday, September 14, 2009

satyarthved.blogspot.com पर नवीन त्यागी का लेख

कायरता की पराकाष्ठा
नेहरू से लेकर आज तक भारत के राजनेता सीमाओं से छेड़छाड़ आराम से सहन करते आए है। महाभारत में भीष्म पिता ने कहा है कि,"राष्ट्र की सीमाएं माता के वस्त्रों के सामान होती है,कोई भी बेटा जिनसे छेड़छाड़ सहन नही कर सकता."हमारे देश के नेतागण चाहे चीन हो या बांग्लादेश ,कोई भी कितना ही अतिक्रमण करले वे उसे सहन तो करते ही है साथ ही उसे भारतीय जनता से छुपाते भी है।
पिछले साल अकेले चीन ने ही भारत में घुसपैठ का लगभग २२५ बार दुस्साहस किया है। चीन ने १९५० में तिब्बत पर कब्जा करने के बाद जब लद्दाख में ओक्सिचीन पर अतिक्रमण करके निर्माण कार्य भी शुरू कर दिया था तो जानकारी के बावजूद नेहरू ने न केवल कोई कार्यवाही की बल्कि इस तथ्य को भारतीय जनता से छुपाने की पूरी कोशिश भी की। ओक्सिचीन के आलावा चीन ने शिप्कला,बारहोती,तवांग व नेफा में भी घुसपैठ करके अपने अड्डे बना लिए थे।
भारत का ३८००० वर्ग किलोमीटर का भाग चीन १९५५ तक कब्जा चुका था।बाद में संसद में हंगामा होने पर नेहरू ने जवाब दिया कि ,"वहाँ तो घास तक भी नही उगती।" नेहरू की इस बात का जवाब उस समय के रक्षा मंत्री रहे महावीर सिंह त्यागी ने जब अपनी टोपी उतारकर दिया कि, "देखो मेरे गंजे सर पर भी एक बाल नही उगता ,इसे भी काटकर चीन को सोप दो।" इस उत्तर को सुनकर नेहरू झल्लाकर संसद से बहार चले गए ।
इसी वर्ष भी सिक्किम से चीनियों को खदेड़ने में कई भारतीय सैनिको ने वीरगति प्राप्त की है। आज चीन की तरफ़ से जो लगातार अतिक्रमण हो रहा है उसकी चेतावनी १९५० में ही सरकार को वीर सावरकर ने देते हुए कहा था कि, " भारत को असली खतरा चीन से है,इसलिए भारत की उत्तरी सीमा को सबसे पहले सुरक्षित किया जाय।" सावरकर की इस बात का समर्थन उस समय रहे सेना के सर्वोच्च अधिकारी जनरल करिअप्पा ने भी किया था। परन्तु सत्ता के मद में चूर नेहरू ने सावरकर की उस बात को अनसुनी कर दिया । नेहरू की वही निति आजतक जारी है ।
चीन बार बार भारतीय छेत्र में रोज अतिक्रमण कर रहा है, और भारत का रक्षा मंत्री लगातार कह रहा है कि चिंता की कोई बात नही। इस निति को अहिंसा नही बल्कि कायरता कहते है।
इन्ही बातों कि और इंगित करती हुई कवि श्री देवेन्द्र सिंह त्यागी की कविताओं की ये पंक्ति देखिये
दो पक्षो के बीच राष्ट्र की धज्जी उड़ती जाती।
राष्ट्र-अस्मिता संसद में है खड़ी-खड़ी सिस्काती।
पल-पल क्षन-क्षन उसका ही तो यहाँ मरण होता है।
द्रुपद सुता का बार-बार यहाँ चीर-हरण होता है।

युद्धों से भयभीत देश जो युद्धों से बचता है।
युद्ध स्वं उसके द्वारों पर दस्तक जा देता है।
इसलिए शत्रु की चालों में न अपने को फसने दो।
वीरों की छाती पर अब तो शास्त्रों को सजने दो।
यदि समय पर चूके सब कुछ राष्ट्र यह खो देगा।
फ़िर सिंहासन की एक भूल का दंड देश भोगेगा।